किडनी की बीमारियों में जड़ी-बूटियों की है अहम भूमिका

किडनी की बीमारियों में जड़ी-बूटियों की है अहम भूमिका

सेहतराग टीम

भारतीय प्राचीन च‍िकित्‍सा पद्धति आयुर्वेद में हर बीमारी का इलाज है इसका दावा आयुर्वेदिक च‍िकित्‍सक लगातार करते रहे हैं। प्रकृति से मिलने वाली जड़ी-बूटियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं ये भी छिपी हुई बात नहीं है। इसके बावजूद आधुनिक च‍िकित्‍सा पद्धति यानी एलोपैथी के मुकाबले आयुर्वेद को वो स्‍थान नहीं मिल पाया है जो उसे मिलना चाहिए। दअसल इसकी वजह आयुर्वेद के इलाज में वैज्ञानिक सत्‍यता की तलाश की कमी है। यानी एलोपैथी के डॉक्‍टर कहते हैं कि आयुर्वेदिक च‍िकित्‍सकों के दावे व‍िज्ञान की कसौटी पर खरे उतरने चाहिए।

आयुर्वेद की क्षमताओं पर इस बार के भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में जमकर चर्चा हुई है। यहां आयुर्वेद के जानकारों ने तथ्‍यों के साथ ये जानकारी साझा की कि आयुर्वेद में इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि कुछ जड़ी-बूटियों में लंबे समय से चली आ रही गुर्दे (किडनी) की बीमारियों को बढ़ने से रोकने के जरूरी औषधीय गुण होते हैं।

भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में औषधियों की पारंपरिक पद्धतियों जैसे यूनानी, आयुर्वेद, योग और पंचकर्म से जुड़े विशेषज्ञों ने इस बात पर चर्चा की कि जड़ी-बूटियां कैसे किडनी की बीमारी रोकने और उसके इलाज में प्रभावी हो सकती हैं।

उन्होंने दावा किया कि एलोपैथी में गुर्दे के इलाज के लिए सीमित विकल्प उपलब्ध होने की वजह से, ये दवाएं बीमारी को फैलने की गति को धीमा करेंगी और सावधानीपूर्वक लिए गए आहार एवं कसरत के साथ इसके लक्षणों से राहत भी दिलाएंगी।

एआईएमआईएल फार्मा के कार्यकारी निदेशक संचित शर्मा ने कहा कि आयुर्वेद में इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि कुछ भारतीय जड़ी-बूटियों में किडनी की स्थायी बीमारियों को फैलने से रोकने के औषधीय गुण होते हैं।

सत्र में बतौर वक्ता शामिल शर्मा ने वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित सिरप (नीरी केएफटी) के बारे में विस्तार से बताया जो पुनर्नवा जैसे औषधीय पौधों से बना है। इस पौधे के विभिन्न लाभ सर्वज्ञात हैं जिनमें पेशाब की बारंबारता को बढ़ाना, सूजन को रोकना, एंटी ऑक्सिडेंट और दिल पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाले प्रभाव शामिल हैं।

पुनर्नवा से बनी दवाई की प्रभावशीलता को हाल में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में किए गए अध्ययन में प्रमाणित किया गया था। यह 2017 में वर्ल्ड जर्नल ऑफ फार्मेसी और फार्मास्यूटिकल्स साइंस में भी प्रकाशित हो चुका है।

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